Tuesday, November 25, 2008

दिल का तूफ़ान

क्या करू के लिखे बिना रहा नही जाए
क्या करू के मेरा शेर किसीको समज्ह नही आए
खैर मना के तेरे दिल में तूफ़ान नही
क्या लिखूं की तू भी खुदको मेरी जगह पाए .

Sunday, November 23, 2008

अकेलेपन का कलम

अकेलेपन का कलम सुनाऊ मैं किसको ?
इसकी आदतसी अब पड़ गई है हमको
सर चढ़के लिखवाता है यही
अकेलेही कैसे बताऊ मैं तुमको ?

मेरे शेर को मेरा अक्स ना समज्हना.

हर शेर को मेरा अक्स ना समज्हना
ये तोह हम यूं ही लिखते है
और हर आसू को मेरा दर्द न समज्हना
ये तोह हम यूं ही जीते है

जवानी दीवानी

जवानी का जोश है या मेरी बदगुमानी
के रंज से परहेज लगता नहीं अभी
जो ज़िन्दगी ही इतनी प्यारी लगने लगी
कैसे कोई तोहफा उसका मना करे कभी

कभी हमपे भी इनायत कीजिये

वोह सबसे बात करते है हमें छोड़कर
सबको बहलाते है हमारा दिल तोड़कर
हमें यूं लगता है जैसे
जिंदगी बीत रही हो हमसेमुह मोड़कर

उनके सितम

अबतो हद्द हो गयी उनके सितम ढानेकी
दीवाना बनानेकी और बेखबर रहनेकी
हमसे तो ना कहनेकी हुई न छुपानेकी
और वोह वजह पूछते है बेकरार होनेकी

दुनियादारी

अंजान नहीं दुनियादारीसे
पर दिलकी सुनते सुनाते है
बाज़ी भलेही हार जाये
पर दिल जीतके जाते है

दिल्लगी

नादान दिल दुहाई देता है तन्हाई की
आरजू रखता है दिलदार की
हम भी होशियार है बात मानते नहीं
वरना दिल्लगी होने में क्या देर थी