Wednesday, March 18, 2009

दिल्लगी पे बंदिशे

भूलूं जो बंदिशें
हर शौक फरमाने को जी चाहता है
मुआफ करे जो मुझे
तुज्ह्से दिल्लगी को जी चाहता है |

1 comment:

MB said...
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